Wednesday, February 23, 2011

Beautiful Creation !!

here's a beautiful creation by an anonymous reader.do read & get back with any comments.//best//mg

Anonymous 1.

ओ राधिके !


परिभाषाएं अपर्याप्त
समय स्तब्ध
दूरियां असामान्य
वे शब्द, अकथित
तब भी तुम हो, यहीं तो हो

आज, जब तुम
संभवतः नहीं हो
या, यहीं तो हो
हम हैं
भावनाएं हैं
अकथ्य, अकथित
अन्तरंग तरंग
'शांत' कोलाहल
जीवन के तट पर
झकझोरें, अशांत
फिर भी थाह नहीं
इस अथाह जीवन की

और चारों ओर के
इन बंधनों से दूर,
सुदूर
जब ये कदम चल दिए
जैसे अनगिनत यह लहरें
तट तक पहुँच कर
न जाने कब, कहाँ
अथाह, अनंत सागर में
चुपचाप विलीन !

पर किसे पता, कब,
धीरे से फिर
दूसरी-सी लहर सी
उद्वेलित, आलौकिक
उठती, गिरती,
जीवन तट पर आ जाए

और हम
अपने ही तानों बानों
में घिरे हुए
अभिमान, आकांक्षाओं
और ओछी भावनाओं से
आप्लावित
तुम्हें न दे पायें
वही सब
जो दे ही नहीं पाए
एक जीवन भर

****

1 comment:

  1. A very thoughtful and deeply touching Kavita.
    Needs to be read many times to really grasp the true meaning.

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